हमने आपको अपने पिछले लेख में बताया था कि हम खोज रहे थे जहाँपनाह नगर पर कोई बता नहीं पा रहा था और उसी क्रम में अनजाने में मैं लाल गुम्बद पहुँच गया था। जिसकी विस्तृत जानकारी हमने पिछले लेख में दिया था।
अब आगे
मालवीय नगर में कई लोगों से पूछने के बाद एक चाय बाले गुमटी पर बैठी बच्ची ने कहा आप विजय मंडल के बारे में बोल रहे क्या ?
मुझे अचानक याद आया कि इस नगर में विजय मंडल की चर्चा तो थी। मैंने तुरन्त हामी भर दिया। तब उसने बताया कि आप बेगमपुर गाँव बाजार चले जाओ। वहाँ पर पूछने पर कोई भी बता देगा। और उसने बेगमपुर जाने का रास्ता बता दिया।
और मैं वहाँ पहुँच गया तब पता चला कि जहाँपनाह का नाम ही विजय मंडल था।
वहाँ पहुँचकर जब खंडहर के मुख्य द्वार पर ही कुछ लोगों को ताश खेलते देख कर बहुत क्षोभ हुआ।
सरकारी संरक्षित होने का एक बोर्ड लगाकर सरकार निश्चिन्त हो गई है।
अन्दर परिसर के चारों ओर बने गुफानुमा दरवाजे से कुछ जोड़े भी अंदर जाते दिखे।
आईये अब जानते हैं इसके बारे में।
इस शहर का निर्माण मंगोल आक्रमण से बचने के लिए किया गया था। यह सीरी से क़ुतुब मीनार तक फैला हुआ है।
मुहम्मद बिन तुगलक ने 1326 और 1327 के समय में इस दुर्ग शहर का निर्माण किया था।
यहाँ कई किले के खंडहर मौजूद हैं।
आदिलाबाद, मामूली आकार का एक किला है है जो जहाँपनाह शहर की सीमाओं को सुरक्षा प्रदान करता था। यह किला तुगलकाबाद किले से काफी छोटा लेकिन समान आकृति का है।
बेगमपुर मस्जिद भी है यहाँ पर जिसके बारे में
कहा जाता है की ईरानी आर्किटेक्ट ज़ाहिर अलदीन अल्जयुश ने इस मस्जिद की डिजाईन को बनाया था।
बिजय मंडल
यह बेहतरीन समरूप वर्गीय गुंबद है। इसे हम किसी टावर या महल का नाम नही दे सकते पर भब्यता में कम नहीं है ये।
यह एक तुगलकी संरचना है जो अष्टकोणीय है। इसमें सभी मुख्य दिशाओ में दरबाजों का निर्माण किया गया है।
तो ये है दिल्ली के पुराने सात शहरों का चौथा शहर विजय मंडल।
यहाँ पहुँचना बहुत आसान है।
हौज खास मेट्रो के मजेंटा लाइन की तरफ निकल कर पैदल ही सर्वप्रिय विहार की तरफ से 5 मिनट में पहुँच सकते हैं। पर किसी से भी यह मत पूछना की जहाँपनाह जाना है बल्कि विजय मंडल पूछना।
बस स्टैंड भी सर्वप्रिय विहार है जहाँ से होकर 764 , 448 , 548 , 511 , नम्बर की बस गुजरती है ।
निजी वाहन से आनेवाले इस स्मारक के बाहर अपनी गाड़ी पार्क कर सकते हैं ।