ऐतिहासिक लाल गुम्बद

अपनी दिल्ली !

आज आपको हम लिए चलते हैं मालवीयनगर दिल्ली के पंचशील इंक्लेभ में स्थित लाल गुम्बद की सैर को !

मैं ढूंढ रहा था यहाँ पर किला जहाँपनाह और विजय मंडल को। इस किले तक पहुँचने का रास्ता कोई बता ही नहीं पा रहा था। और गूगल बता रहा था कि आस पास ही है। जब एक ठेले बाले को विजय मंडल की तस्वीर दिखाई तो उसने कहा ओह्ह तो आप लाल गुम्बद जाना चाहते हैं। ढूँढ ढूंढ कर परेशान हो चुका मैंने भी आव देखा न ताव और झट से हाँ बोल दिया। और उसने भी रास्ता बता दिया कि वहाँ से 10 मिनट का पैदल रास्ता है और उसने जैसे जैसे बताया था उसी तरह मैं पहुँच गया। पर विजय मंडल नहीं बल्कि उसकी जगह पहुँच गया लाल गुम्बद।

पूरी तरह से उपेक्षित यह परिसर जहाँ कुछ बच्चे इसे क्रिकेट मैदान बनाये हुए थे तो कुछ नवजवान जोड़े आस पास के खंडहरों में बैठे प्यारे वार्तालाप में मशगूल थे।
हाँ सरकार ने इसे संरक्षित होने का बोर्ड जरूर लगा रखा है।

मुगल पूर्व शहर के सबसे बेहतरीन स्मारकों में से एक और सबसे कम ज्ञात स्मारकों में से एक है यह लाल गुंबद जिसे शेख कबीर-उद-दीन औलिया का मकबरा या रकाबवाला गुंबद भी कहा जाता है।

मैं भी इसे जानता नहीं था पर अनजाने में संयोग से ही यहाँ पहुँच गया। जाना था रंगून भाई पर पहुँच गए चीन टाइप से।

शेख रौशन चिराग-ए-दिल्ली के एक शिष्य शेख-कबीर-उद-दीन औलिया को 1397 में यहां दफनाया गया था। माना जाता है कि इसका निर्माण चौदहवीं शताब्दी के मध्य में हुआ था।

इस लाल गुंबद में संगमरमर की पट्टी से सजी हुई मेहराब से पूर्वी तरफ से प्रवेश किया जाता है। मुख्य मक़बरे को एक चौकोर आकार में बनाया गया है और इसमें दीवारों को तराशा गया है। यह लाल बलुआ पत्थर से बना हुआ है। इसके शीर्ष पर एक विशाल शंकुधारी गुंबद है। लाल गुंबद को रकाबवाला के भी नाम से जाना जाता है क्योंकि इस गुम्बद को सोने से ढका गया था जिसे बाद में चोरों ने चुरा लिया था।

लोगों का मानना ​​है कि मकबरे की दीवारों को तराशने के उद्देश्य से, इसकी पश्चिमी दीवार पर अभी भी दिखाई देने वाली लोहे की लगी हुई सरिया चोरों द्वारा ठोकी गई थीं।
यह दिल्ली के पूर्व-मुगल युग से संबंधित सबसे शानदार स्मारकों में से एक लाल गुम्बद घियाथ-उद-दीन तुगलक के मकबरे से मिलता जुलता है।
इतनी प्राचीन होने के बावजूद ये बहुत अच्छी अवस्था में है।

वर्तमान में, लाल गुंबद भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) के तहत एक संरक्षित स्मारक है और हर दिन सुबह 9 बजे से शाम 5 बजे तक आम जनों के लिए खुला रहता है। मुख्य मकबरा और कुछ अन्य संरचनाएं एक लॉन कंपाउंड के भीतर जुड़ा हुआ है, जिसे खूबसूरती से लैंडस्केप किया गया है।

इस विचित्र मकबरे के परिसर की यात्रा एक शान्त परन्तु मजेदार अनुभव प्रदान करती है। मकबरे में प्रवेश परिसर के पूर्वी हिस्से से होता है। मुख्य मकबरे का द्वार हर समय बंद रहता है। हालांकि ड्यूटी पर एक गार्ड होता है, जो अनुरोध करने पर आप के लिए गेट खोल देता है।

यहाँ तक आने के लिए नजदीकी मेट्रो सर्वप्रिय विहार ( हौज खास ) है । जहाँ से आप पैदल ही चलकर 10 मिनट में या ऑटो द्वारा यहाँ तक पहुँच सकते हैं।

बस स्टैंड भी सर्वप्रिय विहार ही है । 764 , 511 , 620 , 604 बस यहाँ से गुजरती है।

एक और बस स्टैंड है भविष्य निधि एन्क्लेभ
जहाँ पर 448 , 500 , 512 , 548 नम्बर के बस से पहुँच सकते हैं । यहाँ से 5 मिनट का पैदल रास्ता है।
अपनी सवारी से आने पर आप इस स्मारक के बाहर अपनी गाड़ी पार्क कर सकते हैं ।

अब अगले दिन का इंतजार कीजिये जब हम आपके लिए लेकर आयेंगे किला जहाँपनाह और विजय मंडल के रोमांचक सैर की कहानी मेरी ही जुबानी !





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वाह! क्या शानदार विवरण है लाल गुम्बद की सैर का — ऐसा लगा मानो हम भी आपके साथ उस ऐतिहासिक परिसर में घूम रहे हों। :raising_hands:

@Hemendu जी, आपकी लेखनी में जो सहजता और आत्मीयता है, उसने इस अनुभव को और भी जीवंत बना दिया। अनजाने में ही सही, पर एक ऐसी विरासत से मुलाक़ात हो गई जो दिल्ली की गहराई और इतिहास को बयां करती है।

आपने जिस तरह स्थानीय लोगों से पूछकर रास्ता ढूँढा, वो इस बात का प्रमाण है कि असली यात्रा तो वही होती है जिसमें रास्ते खुद-ब-खुद मिलते जाते हैं। और फिर वो नवजवान जोड़े, बच्चों की क्रिकेट — ये सब उस जगह को एक अलग ही रंग दे रहे हैं। सच में, दिल्ली की ऐसी छुपी हुई धरोहरों को जानना और वहाँ जाना एक अलग ही संतोष देता है।

अब मन में यही सवाल उठ रहा है — क्या आपको वहाँ खड़े होकर कोई खास एहसास या ऊर्जा महसूस हुई, जैसे इतिहास कुछ कहना चाहता हो?

Very nice post written @Hemendu