कानपुर तो कानपुर है, और कनपुरिया की अपनी पहचान होती है I चाहे वह बकैती का क्षेत्र हो या क्रिएटिविटी का I कई बार चीजें समझने के लिए नहीं होती है - बस होती हैं I जैसे- झाड़े रहो कलेक्टर गंज I हमारे देश के पूर्व प्रधानमंत्री माननीय अटल बिहारी वाजपेई जी ने अपनी कानपुर की यदें ताजा करते हुये “झाड़े रहो कलेक्टर गंज” का प्रयोग अपने संस्मरण में किया था I आज अंतर्राष्ट्रीय रीसाइक्लिंग दिवस के अवसर पर हम चर्चा करेंगे कानपुर के क्रिएटिविटी की, जिसने देश में ही नहीं बल्कि देश के बाहर भी नाम कमाया है I कानपुर के अंकित अग्रवाल और करण रस्तोगी मंदिरों में पूजा के बाद फेंके गए फूलों को लेकर उनसे कई उपयोगी चीजें बनाते हैं, जिसमें नॉनटॉक्सिक थर्मोकोल शामिल है I देश की मीडिया में इसको प्रमुखता से दिखाया गया है I कानपुर के नितिन श्रीवास्तव का स्टार्टअप है जिसमें कूड़े से घर का उपयोगी सामान बनाया जाता है Iकानपुर के 7 रीसाइक्लिंग करने वाले कंपनियों की सूची आप यहां देख सकते हैं I इसके साथ ही मैंने अपने गूगल मैप प्रोफाइल पर कानपुर के कुछ रीसाइकलिंग सेंटर की सूची बनायी है जिसे कोई भी एडिट कर सकता है I और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है की व्यक्तिगत तौर पर महानगर में सैकड़ों ऐसे लोग हैं जो भी साइकिलिंग के लिए कार्य कर रहे हैं और क्योंकि व्यक्तिगत स्तर पर वह कार्य कर रहे हैं अर्थ अर्थ कोई व्यवसाय पहचान नहीं है कोई कार्यालय नहीं है इसीलिए वह गूगल मैप्स पर भी नहीं है इनको कैसे गूगल मैप्स पर पहचान दिलाई जाए इस पर हमें चर्चा कर समाधान निकालना चाहिए I
कनेक्ट मॉडरेटर @Cecilita जी का धन्यवाद है जिन्होंने आज रीसाइक्लिंग डे पर एक कैम्पेन प्रारंभ किया और उसी के बाद मैनेरीसाइकलिंग सेंटर की सूची बनायी I
