हलचल के बगैर क्या कोई ज़िन्दगी है? मायूसी ही है , कोई गर्जन नहीं , कोई दहक नहीं।
क्या अचल मौन रहना ही ज़िन्दगी की महक है ,
सब खत्म होने के बाद जो रहा , वह ज़िन्दगी है?
किसने कहा ?
ज़िन्दगी की सिर्फ ज़मीन , और मौत के पार आसमान है?
आंसू बरसे यहीं , यहीं शांति , यहीं इश्क़ मेहरबान है। ज़िन्दगी हलचल से भर , भंग इसका उत्साह ना कर ,
किस ने क्या कहा , कहां जाकर सब रुक गया , इसकी परवाह ना कर ।
ज़िन्दगी कश्मकश लिए है , तो भी शून्य में झंझा सा गाता रह ,
बिखेरता चल अपने ऐहसास को , इस ज़िन्दगी का सब कुछ सह ।
अपने हिस्से कि ज़िन्दगी से यूं ही मत दूर जा ,
अब तो कुछ दिन अपने सपनों के गीत गा ।
जला आग अपने में , खुद को ज्योति साकार कर ,
दर्द बसे हैं अगर ज़िन्दगी में , फिर भी एक सुलगन का इंतजार कर। ©The one Himalayan Messiah
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