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आज हम छठ महापर्व की चर्चा करेंगे ये त्योहार कैसे इतना बड़ा महापर्व बना

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कइसन बा? ठीक बा?..

भोजपुरी के बस इन दो शब्दों से पूरे बिहार का स्टीरियोटाइप करने वालों के लिए ये आर्टकल लिखा जा रहा है. अपने यूपी-बिहार के दोस्तों से छठ का प्रसाद तो मगंवा कर खाते हो, तो थोड़ी उस पर्व की जानकारी भी जुटा लो.

एक बिहारी ये नहीं जानता कि होली कब है? दिवाली कब है, शायद क्रिसमस भी भूल जाए लेकिन छठ कब है, इसका जवाब उसकी ज़ुबान पर होता है, दिवाली के 6 दिन बाद.

हालांकि ये जवाब पूरी तरह सही नहीं है, क्योंकि चार दिन तक चलने वाले छठ की शुरुआत दिवाली के चार दिन बाद ही हो जाती है लेकिन घाट पर जाना मुख्यत: छठे दिन ही होता है.

छठ में किसकी पूजा होती है?

मुख्यत: उत्तर भारत और नेपाल के कुछ हिस्से में होने इस पर्व में में सूर्य देवता और छठी मईया यानी सूर्य देव की पत्नी ऊषा माता का पूजा जाता है. इसमें मूर्ती पूजा का चलन नहीं है. व्रती छठ पूजा में 36 घंटों तक निर्जला वर्त करते हैं.

पहला दिन :-

इस दिन व्रती गंगा घाट जा कर स्नान कर ख़ुद को शुद्ध करते हैं और प्रसाद बनाने के लिए गंगा जल घर भी ले जाते हैं. इस दिन को नहा-खा कहते हैं. छठ में पवित्रता का ख़ास ख़्याल रखा जाता है.

शुद्धता का अंदाज़ा आप इस बात से लगा सकते हैं कि प्रसाद बनने के लिए इस्तेमाल होने वाले गेंहू भी छत पर बैठ कर सुखाये जाते हैं ताकि कोई पक्षी उसे जूठा न कर दे. आटा चक्की वाले भी छठ के दिन अपने मशीन को पूरी तरह से साफ़ करके ही गेंहू पीसते हैं.

दूसरा दिन :-

दूसरे दिन को ‘खरना’ कहते हैं. इस दिन व्रती पूरे दिन अनाज या पानी ग्रहण नहीं करते. शाम के वक्त ‘छठी मईया’ को पूजने के बाद ही व्रती प्रसाद और पानी ग्रहण करते हैं. बाद में उस प्रसाद को आस-पड़ोस में बांटा जाता है.

खरना भी किसी त्योहार जैसा ही होता है. लोग प्रसाद खाने के लिए एक दूसरे को निमंत्रण देते हैं और दूर-दूर तक अपने सगे-संबंधियों के पास प्रसाद ग्रहण करने और व्रती का आशीर्वाद लेने जाते हैं. प्रसाद में मुख्यत: गुड़ से बनी खीर और रोटी होती है.

तीसरा दिन(संध्या अर्ध्य) :-

तीसरे दिन व्रती दिन भर पानी और अनाज ग्रहण नहीं करते. पूरे दिन शाम को घाट पर जाने की तैयारी होती है. प्रसाद बनाए जाते हैं, दउड़ा (जिसमें प्रसाद रखा जाता है) सजाया जाता है. ठेकुआ बनता है. गन्ना, नारियल, गागर, सेब, संतरा आदी किस्म के फल रखे जाते हैं.

शाम को पूरा परिवार घाट पर तैयार होकर जाता है. वहां व्रती संध्या अर्घ्य डालते हैं. इसमें डूबते सूर्य देव और छठी मईया को पूजा जाता है.

कोसी भराई :-

घर लौटने के बाद कई व्रती एक साथ मिलकर ‘कोसी’ भरते हैं(सामान्यत: छठ पूजा की सभी रीति-रिवाज कई व्रती एक साथ मिलकर ही करते हैं). इसमें पांच गन्नों को मिलाकर एक बांध कर झोपड़ी नुमा आकार में खड़ा किया जाता है और उसके नीचे दीया जलाते हैं. यही कोसी अगले दिन सुबह दोबारा घाट पर तैयार किया जाता है.

चौथा दिन(भोरवा घाट) :-

ये छठ पूजा का आखिरी दिन होता है. व्रती छठी माता और सूर्य देवता को अर्ध्य डालते हैं. परिवारी वाले भी पूजा करते हैं. पूजा संपन्न होने के बाद. व्रती सभी में ठेकुआ बांटते हैं.

घर वापस जाकर व्रती अपना लगभग दो दिन लंबा निर्जला उपवास तोड़ते हैं और आस-पड़ोस में प्रसाद बांटते हैं.

ये कुल-मिलाकर मोटी-मोटी बातें हैं जिससे छठ पूजा को समझा जा सकता है. इसमें कई चीज़ें ऐसी भी हैं, जिन्हें सिर्फ़ अनुभव किया जा सकता है. चार दिन तक चलने वाले इस पर्व में व्रतियों का छठ के गीत गाना, बच्चों का पटाखा छोड़ना, बड़ों का सभी काम समय से पूरा करना, गांव-मोहल्ले की सफ़ाई और भी बहुत कुछ. छठ को ‘महापर्व छठ’ क्यों कहा जाता है, वो आप किसी आर्टिकल को पढ़ कर नहीं समझ सकते, उसके लिए घाट जाना ही पड़ेगा.

आप सभी को छठ पूजा की हार्दिक शुभकामनाएं …

Hi @SudhanshuTiwari ,

Please excuse my reply in English.

Thank you for being so complete in your explanation about the Chhath Festival. It is amazing that you celebrate it four days performing different rituals.

It would be very interesting for all of us if you can add some photos illustrating these traditions.